वेवेल योजना और शिमला सम्मेलन 1945 In Hindi

सन् 1945 में लॉर्ड वेवेल द्वारा भारत की संवैधानिक समस्याओं को हल करने के लिए एक ब्रेकडाउन योजना बनाई गई, जिसे वेवेल योजना (Wavell Plan) कहा जाता है। जून 1945 में लॉर्ड वेवेल ने शिमला में एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में भारतीय राजनीतिक संगठनों के विभिन्न नेताओं को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन को शिमला सम्मेलन 1945 (Shimla Conference 1945) कहा जाता है।

इस लेख में आप वेवेल योजना और शिमला सम्मेलन 1945 (Wavell Plan and Simla Conference 1945) से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू जैसे वेवेल योजना क्या है, वेवेल योजना कब शुरू हुई, वेवेल योजना में क्या-क्या प्रस्ताव रखे गए, वेवेल योजना का क्या उद्देश्य था, शिमला सम्मेलन असफल क्यों रहा आदि का अध्ययन करेंगे।

वेवेल योजना क्या है?

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा 1942 में क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया। यह मिशन भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने में असफल रहा और कांग्रेस ने क्रिप्स मिशन के विरोध में 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया।

क्रिप्स मिशन से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करने के लिए पढ़ें: क्रिप्स मिशन 1942

भारत छोड़ो आंदोलन के साथ ही पूरे देश में क्रांतिकारी गतिविधियां अत्यधिक बढ़ गयी। ब्रिटिश सरकार ने इस पर नियंत्रण पाने के लिए कांग्रेस के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।

द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी और जापान की शक्ति से ब्रिटेन सरकार घबराई हुई थी। अमेरिका, चीन तथा अन्य शक्तियों द्वारा ब्रिटेन पर लगातार भारत का सहयोग प्राप्त करने का दबाव बनाया जा रहा था।

जापान ने दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों से ब्रिटेन की सेना को खदेड़ दिया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा विदेशी उपनिवेशों को संभालना कठिन हो गया था। भारत की जनता ने विश्व युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग करने से साफ मना कर दिया था और ब्रिटिश भारत पर जापान आक्रमण करने को तैयार बैठा था।

1945 के आते-आते विश्व युद्ध समाप्ति की कगार पर था। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड वेवेल थे, जो कि भारत छोड़ो आंदोलन के समय भारत के सेना प्रमुख थे।

ब्रिटिश सरकार को यह एहसास हो गया था कि भारत को अब और लंबे समय तक बलपूर्वक रोकना नामुमकिन है। इसलिए ब्रिटिश सरकार भारत की संवैधानिक समस्याओं का हल करने में जुट गयी।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने लॉर्ड वेवेल को भारतीय नेताओं से संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने तथा कांग्रेस मुस्लिम लीग के आपसी मतभेदों को दूर कर संवैधानिक समस्याओं का समाधान करने के आदेश दिए।

लॉर्ड वेवेल ने मार्च 1945 में लंदन का दौरा किया। वहां पर प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल व भारत के राज्य सचिव एमरी के साथ भारत की संवैधानिक समस्याओं पर चर्चा की और अंततः लॉर्ड वेवेल द्वारा एक ब्रेकडाउन प्लान तैयार किया गया। इसे वेवेल योजना कहा जाता है।

लॉर्ड वेवेल जून 1945 में वापस भारत लौट गए और 14 जून 1945 को भारतीयों के समक्ष वेवेल योजना को प्रस्तुत किया। और कांग्रेस के सभी नेताओं जो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए थे, को जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया।

वेवेल योजना के प्रस्ताव

  • इस योजना में मुख्यतः वायसराय की कार्यकारी परिषद में सदस्य संख्या को बढ़ाने की बात कही गईं।
  • वेवेल योजना के अंतर्गत कहा गया कि वायसराय की कार्यकारिणी सभा में केवल भारतीयों को ही शामिल किया जाएगा। परंतु वायसराय और commander-in-chief के पद पर अभी भी सिर्फ अंग्रेजों को ही नियुक्त किया जाएगा।
  • कार्यकारिणी सभा में हिंदू और मुस्लिम सदस्यों का प्रतिनिधित्व बराबर रखा जाएगा।
  • वायसराय की नई कार्यकारिणी सभा भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत अंतरिम सरकार के रूप में कार्य करेंगी।
  • गवर्नर जनरल की विशेषाधिकार शक्तियां यथावत बनी रहेगी। हालांकि गवर्नर जनरल के द्वारा इन शक्तियों का प्रयोग न के बराबर किया जाएगा।
  • भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण तक भारत की रक्षा का जिम्मा ब्रिटिश सरकार के पास होगा।
  • यदि संघीय सरकार इस योजना को पारित कर देती है तो प्रत्येक प्रांतों के लिए भी इस प्रकार की घोषणा की जाएगी। अर्थात प्रत्येक प्रांत में भारतीय नेताओं से बने समान लोकप्रिय मंडल होंगे।
  • अंतरिम सरकार में 14 में से 6 सदस्य मुस्लिम, 6 सदस्य हिंदू और अन्य 2 सदस्य अन्य अल्पसंख्यकों के होंगे।
  • यदि युद्ध के दौरान भारतीय ब्रिटेन की सहायता करते हैं, तो युद्ध की समाप्ति के पश्चात भारत के लिए एक संविधान का निर्माण किया जाएगा।
  • राजनीतिक संगठनों की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाएगी। जिसमें कार्यकारिणी के सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सर्वसम्मत सूची तैयार की जाएगी। यदि सूची पर सहमति नहीं बनती है, तो सभी दलों से अलग-अलग सूचियां ली जाएगी।
  • वेवेल योजना के अंतर्गत कहा गया कि विदेशी मामलों के लिए गठित परिषद में 1 सदस्य भारतीय शामिल किया जाएगा।

शिमला सम्मेलन

वेवेल योजना के प्रावधानों पर विचार विमर्श करने के लिए जून 1945 में लॉर्ड वेवेल द्वारा समर कैपिटल ऑफ ब्रिटिश इंडिया शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस शिमला सम्मेलन में विभिन्न राजनीतिक संगठनों के कुल 21 नेताओं को आमंत्रित किया गया था।

इस सम्मेलन का मकसद कांग्रेस और मुस्लिम लीग के आपसी तनाव को दूर कर भारत की संवैधानिक समस्याओं का हल निकालना था। हालांकि लॉर्ड वेवेल की यह योजना भी भारत की संवैधानिक समस्याओं का हल करने में असफल रही।

इस सम्मेलन में वायसराय की कार्यकारिणी सभा में सदस्य संख्या को बढ़ाकर सिर्फ भारतीयों को शामिल करने की बात कही गईं। इसमें हिंदू और मुसलमान समुदाय को समान प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान रखा गया।

शिमला सम्मेलन की चर्चा और तब अटक गई जब अन्ना ने कहा कि एक ऐसा प्रावधान बनाया जाए जिसके अनुसार कार्यकारिणी सभा के मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम लीग में से की जाए। मुस्लिम लीग ही भारत में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करेगी।

इसके साथ ही मुस्लिम लीग ने सांप्रदायिक वीटो पावर की भी मांग की। इस पर कांग्रेस ने जिन्ना का विरोध किया और सहमति न बनने पर वेवेल योजना को खारिज कर दिया गया।

वेवेल योजना के प्रति भारतीयों की प्रतिक्रिया

मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया:

वेवेल योजना के अंतर्गत प्रस्ताव रखा गया की नई कार्यकारिणी सभा में मुसलमानों को हिंदुओं के बराबर प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इस पर जिन्ना ने जोर देकर कहा कि सभी सभी मुस्लिम सदस्य मुस्लिम लीग से ही चुने जाए क्योंकि मुस्लिम लीग ही भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है।

अन्य पार्टी के मुस्लिम सदस्यों को इसमें शामिल नहीं किया जाए। जब जिन्ना कि यह मांगे पूरी नहीं हुई, तो मुस्लिम लीग ने वेवेल योजना को अस्वीकृत कर दिया।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया:

वेवेल योजना के अंतर्गत वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में हिंदुओं और मुसलमानों को बराबर प्रतिनिधित्व देने के बारे में कहा गया था। कांग्रेस ने इसका तीक्ष्ण विरोध किया। क्योंकि भारत की कुल संख्या का 25% से भी कम भाग मुस्लिम समुदाय का है। फिर भी उनको हिंदुओं के बराबर प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है, जो कि बिल्कुल भी उचित नहीं था।

जिन्ना की मुस्लिम लीग से ही मुस्लिम सदस्य नियुक्त करने की मांग को लेकर कांग्रेस में आक्रोश था। उनका कहना था कि कांग्रेस को एक ऐसे दल के रूप में दिखाया जा रहा है, जो सिर्फ सवर्ण हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है।

अंततः लॉर्ड वेवेल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच के मतभेदों को दूर करने में सफल रहे और शिमला सम्मेलन को असफलता कहकर समाप्त कर दिया।

वेवेल योजना और शिमला सम्मेलन की असफलता के कारण

  • वेवेल योजना के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने कार्यकारिणी परिषद की सीटों को धर्म और जाति के आधार पर आरक्षित करने का प्रयत्न किया।
  • वेवेल योजना में हिंदुओं तथा मुसलमानों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रावधान रखा गया। जबकि मुस्लिम समुदाय भारत के अल्पसंख्यक समुदायों में आता है। भारत की कुल जनसंख्या का 25% से भी कम हिस्सा मुसलमानों का होने के बावजूद भी उन्हें किस आधार पर हिंदुओं के बराबर प्रतिनिधित्व दिया जा रहा था। यह एक मुख्य कारण था, इस योजना के असफल होने का।
  • इस योजना में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों को सम्मिलित करने की बात कही गई थी। परंतु भारतीयों की स्वतंत्रता का इसमें कहीं भी जिक्र नहीं था।
  • इस योजना में संविधान निर्माण के बारे में कोई भी पुख्ता बात नहीं कही गई थी।
  • मुस्लिम प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच असहमति के कारण यह योजना विफल हो गयी।
  • इस योजना में सत्ता स्थानांतरण के बारे में तो कहा गया परंतु दलों के बीच सत्ता के विभाजन का हल नहीं निकाल सके।

इस प्रकार उपरोक्त सभी कारणों की वजह से कांग्रेस तथा अन्य संगठनों द्वारा वेवेल योजना को अस्वीकृत कर दिया गया।

वेवेल योजना का उद्देश्य

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और ब्रिटेन में आम चुनाव होने वाले थे। उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे, जो कि कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य थे। उस समय ब्रिटेन में लेबर पार्टी का प्रभाव बढ़ रहा था और उन्हें भय था कि आम चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को हार का सामना करना पड़ेगा।

चर्चिल भारत में संवैधानिक सुधार करके आम चुनावों में सहानुभूति प्राप्त करना चाहते थे।

भारत में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के आपसी तनाव को समाप्त कर संवैधानिक समस्याओं के उपाय का मार्ग खोजना था।

वेवेल योजना भारत में राजनीतिक गतिरोध को हल करने के लिए स्थापित की गई थी। लेकिन उन्होंने मुस्लिम लीग और कांग्रेस के नेताओं के बीच विवादों के कारण प्रस्ताव को छोड़ दिया और अंततः शिमला सम्मेलन में प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

विश्व युद्ध की समाप्ति और लेबर पार्टी के सत्ता में आने के साथ वेवेल के प्रयास रुक गए। लेबर सरकार जल्द से जल्द भारत को आजाद करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने इस कार्य के लिए 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा।

कैबिनेट मिशन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पढ़ें: कैबिनेट मिशन योजना

आपने क्या सीखा?

इस लेख में हमने भारत के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना वेवेल योजना और शिमला सम्मेलन का अध्ययन किया। हमने वेवेल योजना क्या है, वेवेल योजना के अंतर्गत क्या-क्या प्रस्ताव रखे गए, शिमला सम्मेलन कब हुआ, वेवेल योजना के प्रति भारतीयों के क्या प्रतिक्रिया रही और वेवेल योजना के असफल होने के क्या कारण रहे जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयत्न किया।

उम्मीद है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा और आपको वेवेल योजना से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे। यदि आपको अभी भी कोई डाउट है तो आप अपनी समस्या या सुझाव कमेंट बॉक्स के जरिए बता सकते हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. वेवेल योजना कब शुरू हुई?

A. 14 जून 1945

Q. वेवेल योजना का मुख्य उद्देश्य क्या था?

A. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के आपसी मतभेदों को दूर कर भारत की संवैधानिक समस्याओं को हल करना।

Q. शिमला सम्मेलन कब हुआ?

A. जून 1945

Q. शिमला सम्मेलन किसने आयोजित किया?

A. लॉर्ड वेवेल।

Q. शिमला सम्मेलन का अध्यक्ष कौन था?

A. लॉर्ड वेवेल

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