नेहरू रिपोर्ट 1928/Nehru Report In Hindi

अगस्त 1928 में भारतीय राजनेताओं द्वारा लाॅर्ड बिरकेनहेड की चुनौती के प्रत्युत्तर में भारतीय संविधान का एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसे नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है।

इस लेख में हम आपको नेहरू रिपोर्ट 1928 के बारे में बताएंगे। साथ ही नेहरू रिपोर्ट के मुख्य उद्देश्य, इसकी विशेषताएं एवं मुख्य सिफारिशें क्या-क्या थी और नेहरू रिपोर्ट को ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकार किया गया या नहीं जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में विस्तार से पढेंगे और इन्हें समझने का प्रयत्न करेंगे।

नेहरू रिपोर्ट क्या है?

दरअसल नवंबर 1927 में साइमन कमीशन/आयोग का गठन किया गया। इस आयोग का कार्य मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार की जांच करना तथा भारत में संविधानिक सुधारो का अध्ययन करना था।

साइमन कमीशन के सभी सदस्य ब्रिटिश थे तथा इसमें किसी भी भारतीय को सम्मिलित नहीं किया गया था। भारतीयों को इस आयोग में सम्मिलित नहीं करने के कारण कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा तथा अन्य सभी दलों द्वारा इस आयोग का जमकर विरोध किया गया।

भारतीयों द्वारा साइमन कमीशन के प्रति विरोध प्रदर्शन के जवाब में भारत के राज्य सचिव लॉर्ड बिरकेनहेड ने कहा कि भारतीय लोग संविधान निर्माण कार्य के लिए सक्षम नहीं है, इसलिए उन्हें साइमन कमीशन में सम्मिलित नहीं किया गया।

लॉर्ड बिरकेनहेड ने भारतीयों के विरोध को दबाने के लिए भारतीय राजनेताओं को भारत के संविधान के लिए एक ऐसा प्रतिवेदन तैयार करने की चुनौती दी जो हर एक वर्ग, समुदाय और राजनीतिक दल द्वारा स्वीकृत किया जाए। भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा इस चुनौती को स्वीकार कर लिया गया।

दिसंबर 1927 में कांग्रेस का मद्रास अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में संविधान के प्रतिवेदन निर्माण के लिए एक सर्वदलीय सम्मेलन की बात कही गई। सर्वदलीय सम्मेलन में संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को नेहरू समिति के नाम से भी जाना जाता है।

इस समिति का अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू तथा सचिव जवाहर लाल नेहरू को बनाया गया। इस समिति के अन्य सदस्य अली इमाम, तेज बहादुर सप्रू, मंगल सिंह, माधव श्रीहरि अणे, सुभाष चंद्र बोस, शुएब कुरैशी तथा जी.आर प्रधान थे।

इस समिति ने भारत के संविधान का प्रतिवेदन तैयार किया, जिसे नेहरू रिपोर्ट” कहा जाता है। 10 अगस्त 1928 में मोतीलाल नेहरू द्वारा नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। सर्वदलीय सम्मेलन के लखनऊ अधिवेशन में 28 अगस्त 1928 को सभी राजनीतिक संगठनों द्वारा इसे स्वीकार कर लिया गया।

नेहरू रिपोर्ट को दिसंबर 1928 कोलकाता में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में कुछ नेताओं की असहमति के बावजूद बहुमत के आधार पर स्वीकृत कर लिया गया और इसे ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया गया। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार को एक अंतिम चेतावनी (Ultimatum) दी गई। जिसके अंतर्गत कहा गया की नेहरू रिपोर्ट को 1 साल के भीतर यानी दिसंबर 1929 तक लागू करने की बात कही गई।

यदि ब्रिटिश सरकार नेहरू रिपोर्ट को 1 साल के भीतर लागू नहीं करती है तो ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग अभियान शुरू कर दिया जाएगा।

नेहरू रिपोर्ट ने स्वतंत्र भारत के संविधान के लिए नींव का काम किया। इस कारण नेहरू रिपोर्ट को वर्तमान संविधान का ‘ब्लू प्रिंट’ भी कहा जाता है।

भारतीय संविधान सभा का निर्माण कब और किस प्रकार हुआ तथा उसमें कितने सदस्य थे आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: भारतीय संविधान सभा

नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशे

  • नेहरू रिपोर्ट के अंतर्गत भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देने की बात कही गई थी। दूसरे शब्दों में इसे भारत की आंशिक स्वतंत्रता भी कहा जा सकता है। डोमिनियन स्टेटस से तात्पर्य है, देश में सरकार तो भारतीयों की होगी परंतु वे ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अधीन होंगे।
  • केंद्र में द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की जाए एवं मंत्रालय विधायिका के प्रति उत्तरदायी होगा।
  • भारत में एक संघीय प्रणाली की स्थापना की जाए तथा अवशिष्ट शक्तियां प्रांतों की बजाय केंद्र के पास हो।
  • गवर्नर जनरल को संवैधानिक प्रमुख बनाया जाए तथा अन्य कोई शक्तियां प्रदान ना हो।
  • किसी भी राज्य का कोई धर्म नहीं होगा।
  • नेहरू रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के गठन का प्रस्ताव रखा गया।
  • 21 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों तथा महिलाओं को मतदान करने का अधिकार दिया जाएगा।
  • सभी भारतीयों को 19 मौलिक अधिकार एवं महिलाओं को पुरुषों के समान सभी अधिकार दिये जाएंगे।
  • किसी भी समुदाय या वर्ग को पृथक निर्वाचन मंडल नहीं दिया जाएगा।
  • प्रांतों में अल्पसंख्यकों के लिए सीट आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा।
  • प्रांतों का विभाजन या गठन भाषा के आधार पर किया जाएगा ना की किसी वर्ग या समुदाय के आधार पर।
  • देश की मुख्य भाषा भारतीय (हिंदी, संस्कृति या अन्य भारतीय भाषा) होगी। हालांकि अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी किया जाएगा।

नेहरू रिपोर्ट के अंतर्गत भारतीयों द्वारा ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह सभी प्रस्ताव रखे गए। चलिए अब जानते हैं कि नेहरू रिपोर्ट के प्रति ब्रिटिश सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही। लेकिन यह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि नेहरू रिपोर्ट पर क्या सभी राजनीतिक दलों की सहमति थी? तो चलिए जानते हैं कि भारतीय राजनीतिक संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रही।

भारतीय राजनीतिक संगठनों की प्रतिक्रिया

लॉर्ड बिरकेनहेड ने अपनी चुनौती में संविधान का एक ऐसा मसौदा तैयार करने को कहा था जो सभी वर्ग, समुदाय तथा राजनीतिक संगठनों द्वारा स्वीकृत हो।

नेहरू रिपोर्ट के अधिकतर प्रस्तावों या सुझावों से लगभग सभी राजनीतिक दल सहमत थे। परंतु कुछ प्रस्तावों की वजह से कुछ राजनीतिक संगठन नेहरू रिपोर्ट से असंतुष्ट थे। तो आइए जानते हैं कि इन राजनीतिक संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रही।

मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया:

मुस्लिम लीग नेहरू रिपोर्ट के कुछ प्रस्ताव से सहमत थी। परंतु उन्हें कुछ प्रस्ताव से आपत्ति भी थी और अंत में जिन्ना की मांगे पूरी नहीं होने पर मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।

  • 1916 के कांग्रेस मुस्लिम लीग समझौते (लखनऊ पैक्ट) में मुस्लिम समुदाय को अलग से निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया था। परंतु नेहरू रिपोर्ट में किसी भी समुदाय या वर्ग को पृथक निर्वाचन मंडल देने से साफ मना कर दिया गया था।
  • नेहरू रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों के लिए सीट आरक्षण का प्रावधान रखा गया था। परंतु मुस्लिम लीग को इस प्रावधान से आपत्ति थी। क्योंकि उस समय भारत में मुख्यतः पंजाब और बंगाल में मुस्लिम समुदाय का बहुमत था तथा जिन्ना इन दोनों प्रांतों को अलग से मुस्लिम प्रांत बनाना चाहता था। ऐसे में अगर पंजाब और बंगाल में अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिया जाता है तो पंजाब एवं बंगाल को मुस्लिम प्रांत बनाने तथा अलग से संविधान बनाने की आजादी खत्म हो जाएगी और जिन्ना बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो।
  • नेहरू रिपोर्ट में केंद्र को ज्यादा मजबूत व प्रांतों को दुर्बल रखा गया था। पंजाब और बंगाल प्रांत में मुस्लिम समुदाय का बहुमत था, लेकिन केंद्र में में अल्पसंख्यक थे। ऐसे में यदि प्रांतों की बजाय केंद्र को अधिक शक्तियां प्रदान की जाएगी, तो मुस्लिम लीग का पंजाब एवं बंगाल से अधिकार लगभग समाप्त हो जाएगा। इस वजह से मुस्लिम लीग चाहती थी, कि केंद्र के बजाय प्रांतों को अधिक मजबूत बनाया जाए।

1928 में कोलकाता में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट में संशोधन के लिए कुछ सुझाव दिए हैं जो इस प्रकार है:

  • केंद्रीय विधान मंडल में मुसलमानों को एक तिहाई (1/3) प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए।
  • वयस्क मताधिकार लागू होने तक पंजाब एवं बंगाल में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  • मुस्लिम बहुमत वाले तीन नए प्रांतों {सिंध, बलूचिस्तान, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (NWFP)} का गठन किया जाए।
  • अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के बजाय प्रांतों में निहित होगी।

जिन्ना की इन मांगों को पूरा नहीं किया गया और इस वजह से मुस्लिम लीग द्वारा नेहरू रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया। मार्च 1929 में जिन्ना ने 14 सूत्र प्रस्तुत किए जो आगे चलकर स्वतंत्र भारत में भाग लेने के लिए मुस्लिम लीग की मांग बन गए।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया:

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिकांश सदस्य नेहरू रिपोर्ट से सहमत थे परंतु पंडित जवाहरलाल नेहरु, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने नेहरू रिपोर्ट पर आपत्ति जताई।

नेहरू रिपोर्ट में भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देने की बात कही गई थी। लेकिन सुभाष चंद्र बोस एवं जवाहरलाल नेहरू इस फैसले से नाखुश थे। उन्होंने इस फैसले को अनुचित बताया और स्वराज की मांग पर जोर दिया।

इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बोस ने नेहरू रिपोर्ट को खारिज कर दिया और इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लीग की स्थापना की।

हिंदू महासभा, सिख समुदाय और दलित वर्ग के कुछ सांप्रदायिक रुझान वाले नेताओं ने भी नेहरू रिपोर्ट के प्रति आपत्ति जताई और इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।

ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया

दिसंबर 1928 में कोलकाता में हुए सर्वदलीय सम्मेलन में राजनीतिक दलों में मतभेद होते हुए भी बहुमत के आधार पर सभी राजनीतिक दलों द्वारा नेहरू रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया गया।

कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को दिसंबर 1929 तक रिपोर्ट को स्वीकार करने का समय दिया। और रिपोर्ट का स्वीकार न किये जाने की दशा में कांग्रेस ने एक बड़े जन-आंदोलन की चेतावनी भी दी।

नेहरू रिपोर्ट पर सभी भारतीय राजनीतिक संगठनों की सहमति होने के बावजूद भी ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को अत्यधिक प्रगतिवादी और आधुनिक बताकर इसे अस्वीकार कर दिया।

नेहरू रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य

नेहरू रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य डोमिनियन स्टेटस (औपनिवेशिक स्वराज्य) का दर्जा प्राप्त करना था।

अन्य उद्देश्य:

  • एक संघीय प्रणाली की स्थापना एवं अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के अधीन रखना।
  • नागरिकों को मौलिक अधिकार।
  • सुप्रीम कोर्ट का गठन।
  • द्विसदनात्मक प्रणाली की स्थापना।

नेहरू रिपोर्ट का महत्व

नेहरू रिपोर्ट सभी भारतीयों को समान अधिकार देना चाहती थी। इस रिपोर्ट ने भारत में मौलिक अधिकार के प्रावधान की नींव रखी। यह सब अंग्रेजों द्वारा हमारे अपने संविधान को बनाने की चुनौती के साथ शुरू हुआ।

नेहरू रिपोर्ट भारत के लिए प्रस्तावित नए अधिराज्य के संविधान की रूपरेखा थी। यह रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीयों को एक संविधान निर्माण के लिए अयोग्य बताने की चुनौती का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में दिया गया सशक्त प्रत्युत्तर था।

हालांकि नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृत कर दिया गया, लेकिन इसने अनके महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियों को जन्म दे दिया। सांप्रदायिकता की जो भावना पहले अंदर-अंदर ही थी, अब उभर कर सामने आ गयी।

नेहरू रिपोर्ट की असफलता के कारण

नेहरू रिपोर्ट को लेकर भारतीय राजनीतिक संगठनों में अत्यधिक मतभेद था। कांग्रेस के युवा वर्ग के नेताओं, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, सिख समुदाय तथा दलित वर्ग के कुछ नेताओं ने इस रिपोर्ट के प्रति आपत्ति जताई और इसे अस्वीकार कर दिया।

नेहरू रिपोर्ट की असफलता के कारण निम्न प्रकार है:

  • इसमें साम्प्रदायिक आधार पर प्रतिनिधित्व का प्रावधान नहीं किया गया था।
  • नेहरू रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य डोमिनियन स्टेटस का दर्जा प्राप्त करना था। लेकिन कांग्रेस के कुछ युवा नेता जैसे जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि इससे सहमत नहीं थे और वे अब पूर्ण स्वराज्य की प्रबल मांग कर रहे थे।
  • नेहरू रिपोर्ट में प्रांतों को दुर्बल रखा गया, इस वजह से भी कुछ नेता इस रिपोर्ट से नाखुश थे।
  • किसी भी समुदाय या वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन मंडल नहीं दिया जाना।

इन सभी कारणों की वजह से कई नेताओं में नेहरू रिपोर्ट के प्रति मतभेद रहा और इस वजह से उन्होंने इस रिपोर्ट को अस्वीकृत कर दिया।

नेहरू रिपोर्ट से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:

साइमन कमीशन वेवेल योजना
कैबिनेट मिशन योजना क्रिप्स मिशन 1942
अगस्त प्रस्तावसंविधान सभा का निर्माण

आपने क्या सीखा?

इस लेख में हमने जाना कि किस प्रकार भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की चुनौती का नेहरू रिपोर्ट के रूप में संविधान का प्रतिवेदन तैयार करके सशक्त प्रत्युत्तर दिया।

साथ ही अपने जाना है नेहरू रिपोर्ट का निर्माण कब एवं किसके द्वारा किया गया और इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य क्या था एवं नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृत क्यों कर दिया गया।

इस लेख में मैंने नेहरू रिपोर्ट और उससे संबंधित सभी टॉपिक्स को कवर करने का प्रयास किया है लेकिन आप में से किसी को लगता है कि अभी भी इसमें कुछ कमी है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव दे सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. नेहरू रिपोर्ट किसकी अध्यक्षता में तैयार की गई?

A. मोतीलाल नेहरू।

Q. नेहरू रिपोर्ट कब और किसके द्वारा प्रस्तुत की गई?

A. 10 अगस्त 1928 में मोतीलाल नेहरू द्वारा नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और 28 अगस्त 1928 लखनऊ अधिवेशन में सर्वसम्मति द्वारा स्वीकृत कर लिया गया।

Q. नेहरू रिपोर्ट के सदस्य कौन-कौन थे?

A. नेहरू समिति में कुल 9 सदस्य थे। मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, अली इमाम, तेज बहादुर सप्रू, मंगल सिंह, माधव श्रीहरि अणे, सुभाष चंद्र बोस, शुएब कुरैशी तथा जी.आर प्रधान।

Q. नेहरू रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य क्या था?

A. नेहरू रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य डोमिनियन स्टेटस (औपनिवेशिक स्वराज्य) का दर्जा प्राप्त करना था।

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