कैबिनेट मिशन योजना 1946 | Cabinet Mission In Hindi

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्याओं के समाधान के लिए मार्च 1946 में एक समिति को भारत भेजा जिसे कैबिनेट मिशन योजना के नाम से जाना जाता है।

इस लेख में हम आपको भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना कैबिनेट मिशन 1946 के बारे में बताएंगे। साथ ही कैबिनेट मिशन के उद्देश्य, प्रस्ताव और इसकी विफलता के कारणों जैसे सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

कैबिनेट मिशन क्या है?

ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली ने मार्च 1946 में भारत की सत्ता के हस्तांतरण के उद्देश्य से 3 सदस्यों की एक समिति को भारत भेजा। इसे ही कैबिनेट मिशन योजना कहा जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जुलाई 1945 में ब्रिटेन में आम चुनाव हुए और इसमें लेबर पार्टी को जीत हासिल हुई। क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बने। सितंबर 1945 में विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्याओं के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण को अपनाया।

एटली सरकार ने कहा कि भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहने या नहीं रहने का पूर्ण अधिकार है। साथ ही एटली ने भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के अधिकार को भी मान्यता प्रदान की।

कैबिनेट मिशन योजना के सदस्य निम्नलिखित हैं:

  1. ए.वी. अलेक्जेंडर – फर्स्ट लॉर्ड ऑफ एडमिरल्टी
  2. पेथिक लॉरेंस – भारत के राज्य सचिव
  3. स्टेफोर्ड क्रिप्स – व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष

कैबिनेट मिशन का अध्यक्ष पेथिक लॉरेंस को बनाया गया। लॉर्ड वेवेल इस मिशन के सदस्य नहीं थे, परंतु वह भी कैबिनेट मिशन में शामिल थे।

कैबिनेट मिशन भारत कब आया?

कैबिनेट मिशन 24 मार्च 1946 को भारत पहुंचा। 5 से 11 मई तक शिमला में त्रि दलीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि, कांग्रेस व मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शामिल हुए। कांग्रेस की ओर से मौलाना अबुल आजाद, जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार पटेल ने हिस्सा लिया।

मुस्लिम लीग की ओर से मोहम्मद अली जिन्ना, इस्माइल खान तथा लियाकत अली खान। ब्रिटिश सरकार की ओर से गवर्नर जनरल तथा कैबिनेट मिशन के तीनों सदस्य शामिल हुए।

इस सम्मेलन के पश्चात भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला, क्योंकि मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग पर अड़ी हुई थी। कांग्रेस एवं मंत्री मंडल सदस्य मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मांग से सहमत नहीं थे।

अंततः 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना प्रकाशित की।

तो चलिए अब जानते हैं कि कैबिनेट मिशन को भारत क्यों आया और इसे भेजने के पीछे क्या उद्देश्य थे।

कैबिनेट मिशन भारत क्यों आया?

द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन को विजेता राष्ट्र होने के बावजूद भी कई असफलताओं का सामना करना पड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन में आम चुनाव हुए और नई लेबर सरकार का आगमन हुआ।

युद्ध की समाप्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार को यह एहसास हो गया था कि अब ज्यादा समय तक पुराने सिद्धांतों से भारत पर शासन नहीं किया जा सकता। अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन जैसी योजनाओं में असफलता मिलने के पश्चात एटली भारत में स्वशासन स्थापित कर ब्रिटेन को अतिरिक्त भार व शंकाओं से मुक्त कराना चाहते थे।

अगस्त प्रस्ताव भारत में कब और क्यों भेजा गया तथा यह प्रस्ताव क्यों विफल हुआ आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: अगस्त प्रस्ताव 1940

क्रिप्स मिशन भारत क्यों भेजा गया तथा इसके अंतर्गत क्या क्या प्रस्ताव रखे गए आदि के बारे में जानने के लिए पढ़ें: क्रिप्स मिशन 1942

कैबिनेट मिशन योजना 1946 का मुख्य उद्देश्य भारत में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता को हस्थानांतरित करना तथा भारत के संविधान निर्माण के लिए एक संविधान निर्मात्री सभा का गठन करना था।

कैबिनेट मिशन को भारत में संविधान निर्माण के तरीकों पर भारतीय राजनीतिक संगठनों से विचार विमर्श करने के लिए भेजा गया था।

इस मिशन का उद्देश्य था, कि एक ऐसी निर्विवाद संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जाए, जिस पर ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधि तथा देशी रियासतें सहमत हो।

एक दूसरा उद्देश्य भारत में एक ऐसी कार्यकारिणी परिषद का गठन करना था, जिसे लगभग सभी राजनीतिक संगठनों का समर्थन प्राप्त हो।

अब तक आपने जाना कि कैबिनेट मिशन को भारत में कब और क्यों भेजा गया तथा इसके प्रमुख उद्देश्य क्या थे। चलिए अब जानते हैं, कि इस योजना प्रमुख बातें क्या थी और इसमें क्या-क्या प्रस्ताव रखे गए।

कैबिनेट मिशन की प्रमुख बातें एवं प्रस्ताव

  • इस योजना में कहा गया कि ब्रिटिश भारत के प्रांतों तथा देशी रियासतों को मिलाकर भारत संघ का निर्माण किया जाएगा। भारत संघ में विदेशी मामले, रक्षा संबंधी मामले तथा संचार संबंधी मामले केंद्र सरकार के अधीन होंगे और संघीय मसलों को छोड़कर अन्य सभी कार्य तथा अवशिष्ट शक्तियां प्रांतों के अधीन होंगी।
  • इस योजना में प्रत्येक प्रांत की अपनी अलग से कार्यपालिका और विधायिका होगी तथा उसे अपने संबंध में निर्णय करने का अधिकार होगा।। केंद्रीय विधायिका में यदि कोई सांप्रदायिक प्रश्न उठता है, तो उपस्थित एवं मतदान करने वाले सभी सदस्यों के बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
  • भारत के सभी प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया – समूह क: मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा। समूह ख: उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध। समूह ग: बंगाल और असम। प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रीमंडल को सौंप दें।
  • प्रत्येक प्रांत को संविधान में संशोधन या पुनर्विचार करने का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अनुसार कोई भी प्रांत संविधान लागू होने के 10 वर्ष पश्चात संविधान सभा में बहुमत के द्वारा प्रस्ताव पारित करके संविधान पर पुनर्विचार करवा सकेगा।
  • देशी रियासतों को स्वेच्छा से भारत संघ में जुड़ने या ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहने का अधिकार दिया गया।
  • इस योजना में संविधान निर्मात्री सभा के निर्माण को स्वीकृत कर लिया गया। इसमें कहा गया कि प्रांतीय विधानसभाएं निर्वाचनकारी संस्थाएं हो और वे संविधान सभा के सदस्यों को निर्वाचित करें। क्योंकि उस समय वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का गठन संभव नहीं था।
  • इस योजना के अंतर्गत संविधान निर्मात्री सभा में कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई। जिसमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देसी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
  • प्रत्येक प्रांत द्वारा भेजे जाने वाले सदस्यों की संख्या उसकी जनसंख्या के आधार पर निश्चित की गई और इस संबंध में 10 लाख जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि लेने का नियम अपनाया गया।
  • मतदाताओं को 3 वर्गों में बांटने का निश्चय किया गया : साधारण, मुसलमान और सिख (केवल पंजाब)।
  • रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए, लेकिन उनके प्रतिनिधियों का चुनाव ब्रिटिश भारत से संविधान सभा के लिए चुने गए प्रतिनिधियों की ‘समझौता समिति’ और देशी रियासतों की तरफ से बैठाई गई ‘समिति’ के द्वारा आपसी बातचीत से तय किया जाएगा।

कैबिनेट मिशन का महत्व

कैबिनेट मिशन 1946 ने भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान निर्मात्री सभा के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। यह योजना कई प्रकार से महत्वपूर्ण थी, लेकिन इसकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि इसने मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मांग को खारिज कर दिया।

संविधान निर्मात्री सभा का निर्माण कब और किस प्रकार हुआ तथा इसके निर्माण में क्या-क्या कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: संविधान निर्मात्री सभा

कैबिनेट मिशन के संदर्भ में महात्मा गाँधी ने लिखा था कि “कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों में वे बीज मौजूद हैं, जो इस देश को ऐसा महान बना देंगे जिसमें कष्ट और दुःख का नाम न होगा।”

कांग्रेस व मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया

कैबिनेट मिशन को कांग्रेस के मुस्लिम लीग द्वारा आंशिक स्वीकृत किया गया। मैंने यहां आंशिक स्वीकृत इसलिए कहा है, क्योंकि इस मिशन के कुछ प्रस्तावों को स्वीकार करने के लिए दोनों दल तैयार थे, परंतु कुछ प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करना चाहते थे।

सबसे पहले बात करते हैं मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया के बारे में। मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन को पहले खारिज कर दिया था, क्योंकि इसमें पाकिस्तान की मांग को अस्वीकृत कर दिया गया था। परंतु जुलाई 1946 में मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन को स्वीकृति प्रदान कर दी।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कैबिनेट मिशन द्वारा मई 1946 में प्रकाशित प्रस्ताव में कहा गया था, कि सभी प्रांतों को तीन समूहों में बांटा जाएगा एवं संविधान लागू होने के 5 साल के बाद कोई भी प्रांत स्वेच्छा से समूह बदल सकता है।

मुस्लिम लीग ने इस प्रस्ताव को दूरदर्शिता से भारत के विभाजन के रूप में देखा और कैबिनेट मिशन को स्वीकृति प्रदान कर दी।

अभी बात करते हैं कांग्रेस के प्रतिक्रिया के बारे में। कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन को अस्वीकृत करना चाहा, क्योंकि इसमें केंद्र सरकार को बहुत कमजोर बनाया गया। परंतु इस प्रस्ताव में पूर्ण स्वराज, संविधान निर्माण, भारत संघ एवं अंतरिम सरकार के निर्माण को मंजूरी दे दी गई थी। इसलिए कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया।

दोनों दलों की स्वीकृति के पश्चात जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए। कैबिनेट मिशन योजना में प्रांतों के समूहीकरण के बारे में स्पष्ट रूप से निर्देश नहीं दिए गए थे, जिससे आगे चलकर काफी मतभेद पैदा हुए।

मुस्लिम लीग चाहती थी कि प्रांतों को समूह में रहने तथा समूह के संविधान को मानना अनिवार्य किया जाए। परंतु कांग्रेस इसके विपरीत चाहते थी, कि कोई भी प्रांत समूह में रहने तथा समूह के संविधान को मानने के लिए बाध्य ना हो।

इस मतभेद को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन ने प्रांतों के समूहीकरण को स्पष्ट करते हुए कहा कि कोई भी प्रांत समूह में रहने तथा समूह के संविधान को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

इससे मुस्लिम लीग के नेता बौखला उठे और उन्होंने कैबिनेट मिशन का विरोध शुरू कर दिया। मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया और 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के प्रथम अधिवेशन में हिस्सा नहीं लिया।

कांग्रेस तथा ब्रिटिश सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद भी मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग पर अड़ी रही। फलस्वरूप मई 1947 में भारत के विभाजन की घोषणा की गई।

कैबिनेट मिशन योजना के परिणाम

कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को 208 एवं मुस्लिम लीग को 73 सीटें मिली। संविधान सभा ने अपनी दुर्बल स्थिति से मुस्लिम लीग के नेता बौखला उठे।

मुस्लिम लीग के निरंतर विरोध तथा पाकिस्तान की मांग पर अढे रहने के बाद, वायसराय ने अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा। 12 अगस्त 1946 को वायसराय ने जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

इसमें सदस्य संख्या 14 (6 सदस्य कांग्रेस, 5 सदस्य मुस्लिम लीग, 3 सदस्य अन्य अल्पसंख्यकों की ओर से) तय की गई।

इसके विरोध में मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस की शुरुआत की। जिस वजह से पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए और पहले ही दिन सैकड़ों लोग मारे गए। मौलाना आजाद ने 16 अगस्त को भारतीय इतिहास का काला दिवस बताया।

सर्वप्रथम सरदार वल्लभभाई पटेल ने माना कि एकमात्र विभाजन ही इन दंगों व हिंसा को रोकने का उपाय है।

कैबिनेट मिशन से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:

अगस्त प्रस्ताव 1940क्रिप्स मिशन 1942
नेहरू रिपोर्टसंविधान सभा
शिमला सम्मेलन साइमन कमीशन

आपने क्या सीखा?‌‌

इस लेख में हमने जाना कि कैबिनेट मिशन भारत कब और क्यों आया? इसके क्या क्या उद्देश्य थे और कैबिनेट मिशन के अंतर्गत क्या-क्या प्रस्ताव रखे गए।

साथ ही हमने जाना कि कांग्रेस व मुस्लिम लीग की क्या प्रतिक्रिया रही और कैबिनेट मिशन को असफलताओं का सामना क्यों करना पड़ा।

FAQs

Q. कैबिनेट मिशन भारत कब आया?

A. 24 March 1946 को कैबिनेट मिशन भारत आया।

Q. कैबिनेट मिशन भारत क्यों आया?

A. कैबिनेट मिशन शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता को हस्थानांतरित करने के लिए और भारत के संविधान निर्माण लिए एक संविधान निर्मात्री सभा का गठन करने के लिए भारत आया।

Q. कैबिनेट मिशन का अध्यक्ष कौन था?

A. कैबिनेट मिशन के अंतर्गत पेथिक लोरेंस, स्टेफोर्ड क्रिप्स तथा ए.वी एलेग्जेंडर को भारत भेजा गया था। पेथिक लॉरेंस को इस मिशन का अध्यक्ष बनाया गया था।

Leave a comment