साइमन कमीशन | Simon Commission In Hindi

ब्रिटिश सरकार द्वारा 8 नवंबर 1927 को भारत में संवैधानिक सुधारों के अध्ययन तथा मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार की जांच के लिए ‘साइमन कमीशन‘ का गठन किया गया।

इस लेख में मैं आपको भारत के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना – साइमन कमीशन के बारे में बताऊंगा। इस लेख में साइमन कमीशन से संबंधित सभी तथ्यों जैसे साइमन कमीशन भारत कब और क्यों आया (Simon Commission Bharat kyon aaya), साइमन कमीशन ने क्या-क्या सुझाव दिए, साइमन कमीशन के प्रति भारतीयों की क्या प्रतिक्रिया रही जैसे सभी महत्वपूर्ण कारणो के पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

साइमन कमीशन क्या है?

साइमन कमीशन 7 ब्रिटिश सांसदों का एक समूह था। इस आयोग का गठन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बाल्डविन के आदेश पर 8 नवंबर 1927 को भारत के राज्य सचिव लाॅर्ड बिरकेनहेड की देखरेख में किया गया।

भारत सरकार अधिनियम 1919 (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) के तहत ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रशासन में भारतीयों को सम्मिलित करना शुरू कर दिया था। इस अधिनियम में एक प्रावधान रखा गया, जिसके अनुसार 10 वर्ष पश्चात अर्थात 1929 में एक आयोग का गठन किया जाएगा।

सर जॉन साइमन को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। जॉन साइमन के नाम पर ही आयोग का नाम साइमन कमीशन पड़ा।

साइमन कमीशन में कुल 7 सदस्य थे और यह सभी सदस्य ब्रिटिश सांसद थे। साइमन कमीशन के सभी सदस्यों के नाम निम्न प्रकार है:

  1. सर जॉन साइमन : Liberal Party
  2. क्लिमेंट एटली : Labour Party
  3. डोनाल्ड हावर्ड : 3rd Baron & Mount Royal
  4. हैरी लेवी लॉसन : 1st Viscount Burnham
  5. जॉर्ज लेन फॉक्स : Conservative Party
  6. एडवर्ड कैडागन : Conservative Party
  7. बरनोन हॉर्टशॉर्न : Labour Party

साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे तथा इस आयोग में किसी भी भारतीयों को सम्मिलित नहीं किया गया था। इस वजह से साइमन कमीशन को ‘श्वेत कमीशन’ कहा गया। भारतीयों को साइमन कमीशन से बाहर रखने का निर्णय लॉर्ड इरविन के सुझावों के आधार पर लिया गया था। लॉर्ड इरविन उस समय भारत के वायसराय थे।

लेबर पार्टी के सांसद क्लिमेंट एटली आगे चलकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा और भारतीय संविधान सभा के निर्माण एवं 1947 में सत्ता हस्तांतरण में अहम भूमिका निभाई।

भारत सरकार अधिनियम 1919 के अनुसार आयोग का गठन 10 वर्ष पश्चात यानी 1929 में किया जाना था। परंतु ब्रिटिश सरकार ने इस आयोग का गठन 2 वर्ष पहले 1927 में ही कर दिया।

तो चलिए जानते हैं आखिर ऐसी क्या वजह थी, जिस कारण ब्रिटिश सरकार को समय से पहले साइमन कमीशन का गठन करना पड़ा।

साइमन कमीशन भारत कब आया?

साइमन कमीशन सन् 1928 में 2 बार भारत आया। पहली बार 3 फरवरी 1928 को भारत में बंबई पहुंचा। जॉन साइमन तथा अन्य सदस्यों ने भारतीय राजनेताओं से विचार विमर्श विमर्श किया और एक साथ मिलकर काम करने की बात कही।

साइमन कमीशन ने भारत के कई प्रांतों के दौरे किए और मार्च 1928 में यह कमीशन वापस ब्रिटेन लौट गया।

साइमन कमीशन भारत में दूसरी बार अक्टूबर 1928 में आया। साइमन कमीशन ने मई 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इस रिपोर्ट को 27 मई 1930 को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया।

साइमन कमीशन भारत क्यों आया?

साइमन कमीशन भारत में मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार की जांच करने एवं संवैधानिक सुधारों का व्यापक अध्ययन करने के लिए आया।

जैसा कि आप पहले ही जान चुके हैं कि भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत 10 वर्ष के पश्चात एक आयोग के गठन का प्रावधान रखा गया था। इस आयोग को क्या-क्या कार्य सौंपे गए, उसके बारे में आगे पढ़ेंगे।

ब्रिटिश सरकार ने 10 वर्ष पश्चात यानी 1929 से पूर्व ही 1927 में साइमन कमीशन का गठन कर दिया। दरअसल उस समय ब्रिटेन में लिबरल (उदारवादी) पार्टी की सरकार थी और 1929 में ब्रिटेन में आम चुनाव होने वाले थे। लिबरल सरकार को भय था कि वह 1929 के आम चुनाव में लेबर पार्टी से हार जाएंगे।

वे नहीं चाहते थे कि भारतीय समस्या को सुलझाने का मौका लेबर पार्टी को दिया जाए, क्योंकि लेबर पार्टी के हाथों में वे ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित नहीं समझते थे।

एक्ट 1919 के बाद भारत में सांप्रदायिक दंगे काफी हद तक बढ़ गए थे और राजनीतिक संगठनों की एकता नष्ट हो चुकी थी। ब्रिटिश सरकार इसका फायदा उठाना चाहती थी। इन सांप्रदायिक दंगों को ओर बढ़ाकर भारत की एकता को बिल्कुल खत्म कर देना चाहते थे। जिससे सभी प्रांत संप्रदायों में बट जाएंगे और भारत कभी भी एक संघ नहीं बन पाएगा। इस मकसद से 1927 में साइमन कमीशन का गठन किया गया।

कांग्रेस के वामपंथी युवा वर्ग के नेता औपनिवेशिक स्वराज्य (डोमिनियन स्टेटस) के बजाय अब पूर्ण स्वराज की मांग करने लग गए और भारतीय प्रशासन में सुधार की मांग भी करने लगे। इस बात का को अवसर समझकर ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन का गठन कर लिया और उन्होंने सोचा कि भारतीय लगातार सुधार की मांग कर रहे हैं, तो इस वजह से उनका ध्यान इस कमीशन पर नहीं जाएगा। और इसका धीरे-धीरे अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

उपरोक्त सभी कारणों की वजह से ब्रिटिश सरकार द्वारा 1929 के बजाय समय से पहले 1927 में साइमन कमीशन का गठन किया गया। चलिए जानते हैं कि इस आयोग को आखिर क्या क्या कार्य सौंपे पर गए थे।

साइमन कमीशन के कार्य

साइमन कमीशन का कार्य भारत सरकार अधिनियम 1919 (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) की जांच करना और भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करना था।

इसके अलावा साइमन कमीशन को ब्रिटिश भारत में सरकार कैसे काम कर रही है और क्या क्या विकास कार्य चल रहा है आदि के बारे में एक रिपोर्ट तैयार करनी थी।

साइमन कमीशन को प्रतिनिधि संस्थाओं का निरीक्षण करना था और यह पता लगाना था कि वह सही से कार्य कर रही है या नहीं।

इन सबके अलावा साइमन कमीशन को एक रिपोर्ट तैयार करनी थी। जिसके अंतर्गत यह बताना था, कि भारत में उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत को बढ़ाया जाए या इसे सीमित किया जाए अथवा इस में कोई परिवर्तन नहीं किया जाए।

अधिनियम 1919 के प्रावधान के अंतर्गत साइमन कमीशन को यह सभी कार्य करने थे। अब तक हमने जाना कि साइमन कमीशन क्या है, इसे क्यों लाया गया तथा इसके क्या क्या कार्य थे। 8 नवंबर 1927 को साइमन कमीशन का गठन किया गया। चलिए जानते हैं कि आखिर यह कमीशन भारत कब आया।

साइमन कमीशन की सिफारिशें एवं सुझाव

साइमन कमीशन को अपनी रिपोर्ट तैयार करने में 2 वर्ष से अधिक का समय लगा। मई 1930 में कमीशन ने अपने रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट की सिफारिशें एवं सुझाव निम्न प्रकार हैं:

  • भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत भारत में द्वैध शासन व्यवस्था को लागू किया गया था। साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में ब्रिटिश सरकार को द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त करने की सिफारिश की।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया कि सांप्रदायिक दंगों तथा आपसी मतभेदों के कारण द्वैध शासन व्यवस्था सफल नहीं हो सकती। अतः साइमन कमीशन ने सुझाव दिया कि इस द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की जाए अर्थात प्रांतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए।
  • समस्त प्रांतीय शासन मंत्रियों को सौंप दिया जाए और प्रांतीय विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए।
  • केंद्र में किसी भी प्रकार की उत्तरदायी सरकार का गठन नहीं किया जाएगा। प्रांतीय गवर्नर को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ विशेष अधिकार प्रदान किए जाए।
  • ब्रिटिश भारत के प्रांतों और देशी रियासतों को मिलाकर भारत संघ का निर्माण किया जाए और संघीय संविधान का निर्माण किया जाए।
  • उस समय भारत की लगभग 3 से 4% जनसंख्या को ही मताधिकार प्राप्त था। इस रिपोर्ट में इसे बढ़ाकर 10 से 15% जनसंख्या को मताधिकार प्रदान करने की सिफारिश की गई।
  • संप्रदायिक चुनाव प्रणाली को जारी रखा जाए और प्रांतीय विधान मंडल में सदस्य संख्या को बढ़ाया जाए। प्रांतीय विधानमंडल के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से किया जाए।
  • प्रत्येक 10 वर्ष बाद पुनः निरीक्षण के लिए संविधान आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाए। भारत के लिए एक ऐसा लचीला संविधान बनाया जाए, जो स्वयं से विकसित हो सके।
  • उच्च न्यायालय को भारत सरकार के अधीन रखा जाए।
  • बर्मा को भारत से अलग कर देना चाहिए। सिंध तथा उड़ीसा को नए प्रांतों के रूप में स्थापित किया जाए।

साइमन कमीशन का उद्देश्य

  • इस कमीशन का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को शासन की शक्तियों के स्थानांतरण की प्रक्रिया को ओर अधिक लंबा खींचना था।
  • भारत में हो रहे सांप्रदायिक मतभेदों और दंगों को ओर अधिक बढ़ाकर भारत की एकता को नष्ट करना था।
  • भारत की राष्ट्रीय एकता को समाप्त कर राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलना था।
  • प्रांतों को अधिक शक्तियां प्रदान करना तथा केंद्र को दुर्बल रखना। ताकि सभी लोग आपसी मतभेदों में उलझे रहे और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट ना हो सके।

साइमन कमीशन के प्रति भारतीयों की प्रतिक्रिया

साइमन कमीशन के सातों सदस्य अंग्रेज थे और इस आयोग में एक भी भारतीयों को शामिल नहीं किया गया था। इसे भारतीयों ने अपना अपमान समझा और इस कमीशन का विरोध करना शुरू कर दिया।

साइमन कमीशन का विरोध सर्वप्रथम कांग्रेस के नेताओं ने किया। उनका कहना था कि हमारे देश के भविष्य और विकास का फैसला विदेशी लोग कैसे कर सकते हैं। गांधी जी ने कहा कि ‘भारत के बाहर कोई भी भारत की स्थिति का न्याय नहीं कर सकता’।

साइमन कमीशन का विरोध लगभग सभी भारतीय राजनीतिक संगठनों द्वारा किया गया था। हालांकि मद्रास की जस्टिस पार्टी, मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के एक गुट ने तथा भीमराव अंबेडकर ने साइमन कमीशन का समर्थन किया था।

साइमन कमीशन के गठन के पश्चात कांग्रेस ने दिसंबर 1927 को मद्रास अधिवेशन में साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर तथा प्रत्येक प्रकार से बहिष्कार करने का फैसला लिया।

साइमन कमीशन 3 फरवरी 1928 को मुंबई पहुंचा तो भारतीयों ने काले झंडे तथा साइमन कमीशन वापस जाओ (Simon Commission Go Back) के नारो के साथ इसका विरोध किया गया। पूरे देश में आंदोलन व हड़तालें आयोजित की गई।

साइमन कमीशन भारत में जहां भी गया, वहां पर प्रबल रूप से इसका विरोध किया गया। अंग्रेजों ने इस विरोध को दबाने के लिए लाठीचार्ज किया और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई।

साइमन कमीशन दिसंबर 1928 में दोबारा भारत के दौरे पर आया। फिर से पूरे भारत में इसका विरोध किया गया और काले झंडे दिखाए गए तथा साइमन गो बैक के नारे लगाए गए।

पंजाब (लाहौर) में साइमन कमीशन के विरोधियों का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। प्रदर्शन के दौरान पुलिस अधीक्षक स्कॉट के आदेश पर लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाई गई। जिस वजह से वह बुरी तरह घायल हो गए।

घायल अवस्था में लाला लाजपत राय ने कहा था कि ‘मेरे ऊपर जिस लाठी से प्रहार किए गए हैं वहीं लाठी एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी’। गंभीर रूप से घायल होने की वजह से कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गयी। लाला लाजपत राय को शेर ए पंजाब भी कहा जाता है।

लाला लाजपत राय की मृत्यु पर महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भारतीय सौरमंडल का एक और सितारा डूब गया’। मोतीलाल नेहरू ने लाला लाजपत राय को ‘प्रिंस अमंग पीस मेकर्स‘ कह कर श्रद्धांजलि दी। अन्य सभी नेताओं ने उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट किया।

इस घटना से कमीशन के प्रति विरोध और अधिक बढ़ गया। भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय व्यवस्थापिका में बम फेंका और लाला लाजपत राय पर लाठी बरसाने वाले व्यक्ति सांडर्स की लाहौर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। केंद्रीय विधान सभा ने भी साइमन कमीशन का स्वागत करने से मना कर दिया था।

ब्रिटिश सरकार की चुनौती

साइमन कमीशन में कोई भी भारतीय को सदस्य के रुप में शामिल नहीं करने पर भारतीयों ने असंतोष प्रकट किया और इसका विरोध किया। ब्रिटिश सरकार ने अपना बचाव करते हुए कहा कि भारतीय इतने सक्षम नहीं है कि वह खुद के लिए एक ऐसा संविधान बना सके जो सभी समुदायों, अल्पसंख्यकों और रजनीतिक संगठनों द्वारा स्वीकार्य हो।

इसके साथ ही भारतीयों के समक्ष चुनौती रखी गई कि यदि आप एक ऐसा संविधान बना देते हैं तो उस पर ब्रिटिश सरकार द्वारा विचार विमर्श किया जाएगा।

भारतीय राजनेताओं ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और स्वर दो लिए सम्मेलन में एक समिति का गठन किया। इस समिति ने 1928 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे ‘नेहरू रिपोर्ट‘ कहा जाता है। यह रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई चुनौती का प्रत्युत्तर था।

नेहरू रिपोर्ट के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: नेहरू रिपोर्ट 1928

साइमन कमीशन का परिणाम

भारत में साइमन कमीशन के प्रबल विरोध के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत के राष्ट्रवादी आंदोलनों को आसानी से नहीं कुचला जा सकता और उन पर अब ऐसे ही कोई भी प्रावधान या कानून नहीं थोपें जा सकते।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा। इसके अनुसार तीन गोलमेज सम्मेलनों (Round Table Conferences) का आयोजन किया जाएगा। जिसमें भारतीय नेता और ब्रिटिश नेता दोनों मिलकर नेहरू रिपोर्ट और साइमन कमीशन रिपोर्ट पर चर्चा करेंगे। इन गोलमेज सम्मेलनों के बाद दोनों रिपोर्ट्स को मिलाकर एक नया अधिनियम बनाया जाएगा।

1930-32 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए गये और उनके आधार पर भारत सरकार अधिनियम 1935 लाया गया। हालांकि इस अधिनियम में अधिकतर सुझाव साइमन कमीशन रिपोर्ट से और कुछ ही सुझाव नेहरू रिपोर्ट से लिए गए थे।

साइमन कमीशन से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:

नेहरू रिपोर्टकैबिनेट मिशन योजना
अगस्त प्रस्ताव 1940 क्रिप्स मिशन 1942
संविधान सभा का गठन वेवेल योजना

आपने क्या सीखा?

इस लेख के माध्यम से आपने किस प्रकार साइमन कमीशन का गठन किया गया, साइमन कमीशन भारत में कब आया और भारतीयों ने इसका विरोध क्यों किया? जैसे कई महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त की।

इस लेख में मैंने साइमन कमीशन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेश करने का प्रयास किया है। अगर आप में से किसी को लगता है कि इसमें अभी भी कुछ कमी है या साइमन कमीशन से संबंधित कुछ पहलू इसमें नहीं है। तो कृपया करके आप अपना सुझाव कमेंट बॉक्स में दे।‌

FAQs

Q. साइमन कमीशन भारत कब कब आया?

A. साइमन कमीशन भारत में कुल 2 बार आया। पहली बार 3 फरवरी 1928 और दूसरी बार दिसंबर 1928 में साइमन कमीशन भारत आया।

Q. साइमन कमीशन भारत क्यों आया?

A. साइमन कमीशन का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार अधिनियम 1919 (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) की जांच करना, भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करना और उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।

Q. जब साइमन कमीशन भारत आया तब वायसराय कौन था?

A. लॉर्ड इरविन

Q. साइमन कमीशन का गठन कब किया गया?

A. 8 नवंबर 1927

Q. साइमन कमीशन में कितने सदस्य थे?

A. साइमन कमीशन में कुल 7 सदस्य थे। जॉर्ज लेन फॉक्स, हैरी लेवी लॉसन, डोनाल्ड हावर्ड, क्लिमेंट एटली, सर जॉन साइमन, बरनोन हॉर्टशॉर्न, एडवर्ड कैडागन।

Q. साइमन कमीशन के अध्यक्ष कौन थे?

A. सर जॉन साइमन।

Q. साइमन कमीशन के समर्थक कौन थे?

A. मद्रास की जस्टिस पार्टी, मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग का एक गुट तथा भीमराव अंबेडकर।

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