जानिए भारत छोड़ो आंदोलन कब और क्यों शुरू हुआ

8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ को शुरू किया।

इस लेख में हम भारत के इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना भारत छोड़ो आंदोलन का अध्ययन करेंगे। भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) ने आगे चलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार की।

इसके साथ ही हम भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे- भारत छोड़ो आंदोलन को क्यों शुरू किया गया, भारत छोड़ो आंदोलन कितने चरणों में पूर्ण हुआ, भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्व और योगदान रहा और भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के क्या कारण रहे, का विस्तार से अध्ययन करेंगे और इन्हें समझने का प्रयास करेंगे।

भारत छोड़ो आंदोलन

जुलाई 1942 में वर्धा, महाराष्ट्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे वर्धा प्रस्ताव या भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा जाता है।

भारत छोड़ो प्रस्ताव में मुख्यतः ब्रिटिश सरकार से तत्काल भारत छोड़ने और एक अंतरिम सरकार के गठन की अपील या मांग की गई थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने ऐसा न करने पर ब्रिटिश सरकार को जन आंदोलन शुरू करने की धमकी दी।

इसके पश्चात 7 अगस्त 1942 को मुंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन प्रारंभ हुआ। इस अधिवेशन में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कांग्रेस कार्यसमिति के भारत छोड़ो प्रस्ताव का अनुसमर्थन किया और जन आंदोलन शुरू करने की स्वीकृति दे दी।

8 अगस्त 1942 गांधी जी ने ग्वालिया टैंक मैदान जिसे अगस्त क्रांति मैदान के नाम से भी जाना जाता है, में एक जनसभा आयोजित की। इस जनसभा में हजारों की तादाद में लोग शामिल हुए।

गांधीजी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि- इस बार हम अंग्रेजों को भारत से निकालकर रहेंगे और जब तक हमें पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिल जाती, तब तक हम बिना रुके और बिना आराम किए ब्रिटिश सरकार का विरोध जारी रखेंगे। इस बार या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर स्वतंत्रता के लिए मर मिटेंगे।

इस प्रकार गांधी जी ने अपने भाषण में भारतवासियों को करो या मरो (Do or Die) का ऐतिहासिक नारा दिया। भारत छोड़ो नारा युसूफ मेहर अली ने दिया था। युसूफ मेहर अली ने साइमन गो बैक का नारा भी दिया था। भारत छोड़ो भाषण महात्मा गांधी ने दिया था।

साइमन कमीशन क्या था और भारतीयों द्वारा इसका विरोध क्यों किया गया आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: साइमन कमीशन 1927

भारत छोड़ो आंदोलन कब हुआ?

8 अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान में गांधी जी

इसके साथ ही गांधी जी ने अपने भाषण में कहा कि इस बार मैं किसी से भी अपने पद को त्यागने के लिए या नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहूंगा। बल्कि आप अपने पद पर रहते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की इस जन आंदोलन में मदद कीजिए।

महात्मा गांधी ने विदेशी माल और कपड़ों का बहिष्कार करने का आग्रह किया और स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर जोर दिया। इसके साथ ही अंग्रेजी शिक्षा, ब्रिटिश न्यायालय का बहिष्कार करने का आग्रह किया और गांवो की लोक अदालतो एवं पाठशालाओं के विकास पर जोर दिया।

गांधी जी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी स्वतंत्र भारतीय हैं और हम किसी के गुलाम नहीं है। यह एक जन आंदोलन है, इसमें आपको स्वयं अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ना होगा। इसके साथ ही 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में बंबई से भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ।

9 अगस्त 1942 को गांधी जी और कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और गांधी जी को पुणे में आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा नाम अगस्त क्रांति या अगस्त आंदोलन है।

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण

क्रिप्स मिशन की असफलता: मार्च 1942 में क्रिप्स मिशन को भारत भेजा गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका, चीन और अन्य बड़ी शक्तियों द्वारा ब्रिटेन पर लगातार भारत का समर्थन प्राप्त करने का दबाव बनाया जा रहा था। और इसी उद्देश्य से क्रिप्स मिशन को भारत भेजा गया।

इस मिशन ने भारत के समक्ष विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव रखा। क्रिप्स मिशन के इस प्रस्ताव को सभी भारतीय राजनीतिक संगठनों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया। और यह मिशन असफल रहा।

महात्मा गांधी ने क्रिप्स मिशन को पोस्ट डेटेड चेक की संज्ञा दी। और इस मिशन के विरोध में ही भारत छोड़ो प्रस्ताव लाया गया। जिसने आगे चलकर भारत छोड़ो आंदोलन का रूप ले लिया।

क्रिप्स मिशन क्या था, इसे भारत में क्यों लाया गया और भारतीयों ने इसका विरोध क्यों किया आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: क्रिप्स मिशन 1942

जापान की बढ़ती आक्रामकता: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने ब्रिटिश शासित दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों से अंग्रेजों को खदेड़ दिया था। और जापान का अगला निशाना भारत पर था।

कांग्रेस ने समझ लिया था कि अंग्रेज भारत के रक्षा करने में असमर्थ है। इसलिए उनका मानना था कि यदि अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएंगे, तो जापान भारत पर हमला नहीं करेगा।

भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रति असंतोष: 1927 में साइमन कमीशन के गठन की वजह से भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश व्याप्त था।

नेहरू रिपोर्ट और सविनय अवज्ञा आंदोलन की असफलताओं के बाद भारतीय जनता के बढ़ते असंतोष को कम करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने भारत शासन अधिनियम 1935 पारित किया। परंतु यह अधिनियम भारतीय जनता की आकांक्षाओं के प्रतिकूल था।

नेहरू रिपोर्ट क्या है और इसमें क्या क्या प्रस्ताव रखे गए आदि के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़ें: नेहरू रिपोर्ट 1928

खराब आर्थिक स्थिति: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण सभी वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई जिससे भारत की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। भारतीय जनता के लिए दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीद पाना भी दुर्लभ हो गया था।

ऐसी स्थिति के बावजूद भी ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता से लगातार अत्यधिक कर वसूल किया जा रहा था। ब्रिटिश सरकार द्वारा इस शोचनीय स्थिति से निजात पाने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया।

द्वितीय विश्व युद्ध में भागीदारी: सितंबर 1939 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक संगठनों से पूछे बिना ही यह घोषणा कर दी कि भारत ब्रिटेन के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेगा।

इन सभी कारणों ने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को जागृत किया और भारत छोड़ो आंदोलन को जन्म दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन के चरण

भारत छोड़ो आंदोलन मुख्यतः तीन चरणों में पूरा हुआ:

प्रथम चरण: इस चरण को आंदोलन की बाल्यावस्था भी कहा जा सकता है। यह चरण गांधीजी के और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी से लेकर तीन-चार दिन तक रहा।

मार्गदर्शन के अभाव में जनता ने व्यापक जन विद्रोह का रूप धारण कर लिया। शहरी विद्रोह, हड़ताल, बहिष्कार और धरने के रूप में चिह्नित, जिसे जल्दी दबा दिया गया था।

जनता ने जुलूस निकाले, सभाएं की‌ तथा हड़तालों का आयोजन किया। श्रमिकों ने कारखानों में काम न करके समर्थन प्रदान किया। पुलिस का दमन चक्र चला और जनता पर डंडे और गोलियां बरसाईं। जिससे लोगों में अत्यधिक संतोष भड़का और वह हिंसा पर उतर आए।

द्वितीय चरण: इस चरण को भारत छोड़ो आंदोलन की युवावस्था कहा जा सकता है। इस चरण में जनता ने सरकारी भवनों, टेलीग्राफ और अन्य संचार के माध्यमो का विध्वंस किया। रेल पटरियों को उखाड़ दिया, डाकखानों तथा पुलिस थानों को जला दिया गया।

बिहार के कुछ शहरों के लगभग 80% पुलिस स्टेशन खाली हो गए थे। सतारा महाराष्ट्र, बलिया यूपी, तमलुक, कर्नाटक, मिंडापुर बंगाल में अस्थाई सरकारों का गठन कर दिया गया था।

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन का बहुत अधिक कठोरता पूर्वक दमन किया गया और लगभग 1,00,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया। इस प्रकार के अमानवीय दमन ने खुले विद्रोह को दबाने में सफलता प्राप्त की लेकिन आंदोलन भूमिगत हो गया।

तृतीय चरण: आंदोलन के इस चरण में राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे। इन्होंने ने ही भूमिगत होकर भारत छोड़ो आंदोलन का कार्यभार संभाला।

स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी‘ के रूप में लोकप्रिय अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।

उषा मेहता जिन्हें उषाबेन के नाम से भी जाना जाता है, ने भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित किया। इस कार्य में ननका मोटवानी जो कि अमेरिका के शिकागो रेडियो के मालिक थे, ने उषा मेहता की मदद की थी।

बहुत लंबे समय तक इस भूमिगत रेडियो स्टेशन के माध्यम से भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया गया। हालांकि बाद में ब्रिटिश सरकार द्वारा भूमिगत रेडियो स्टेशन को नष्ट कर दिया गया। और पूरी तरह से भारत छोड़ो आंदोलन का दमन कर दिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के उद्देश्य में असफल रहा और सन् 1944 के मध्य तक समाप्त हो गया।

भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण

सहयोग का अभाव: मुस्लिम लीग, भारतीय साम्यवादी दल दलित वर्ग के नेता अंबेडकर तथा हिंदू महासभा ने भारत छोड़ो आंदोलन समर्थन नहीं किया और इसमें भाग नहीं लिया।

मुस्लिम लीग, बँटवारे से पूर्व अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के पक्ष में नहीं थी। कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया, क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे। हिंदू महासभा ने खुले तौर पर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और इस आशंका के तहत आधिकारिक तौर पर इसका बहिष्कार किया कि यह आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा और युद्ध के दौरान आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।

इसके विपरीत मुस्लिम लीग ने लोगों से ब्रिटिश सरकार को द्वितीय विश्व युद्ध में सहयोग करने की अपील की। इस आंदोलन में सभी राजाओं, उच्च वर्ग के लोगों, भारतीय सिपाहियों एवं उच्च अधिकारियों ने सहयोग नहीं किया।

सी. राजगोपालाचारी जैसे कई कांग्रेस सदस्यों ने प्रांतीय विधायिका से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे महात्मा गांधी के विचार का समर्थन नहीं करते थे।

नेतृत्व का अभाव: योजनाओं तथा नेताओं की अनुपस्थिति में कुछ नेता इसे गुप्त रूप से चलाते रहे। लेकिन जो नेता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, वह इस कार्यक्रम के बारे में एकमत नहीं थे। इस प्रकार यह आंदोलन नेतृत्वविहीनता, सुसंगठित योजना, संगठन तथा समन्वय के अभाव में असफल हो गया।

ब्रिटिश सरकार द्वारा क्रूर दमन: आंदोलन करने वालों की तुलना में ब्रिटिश सरकार की शक्ति कहीं अधिक थी। ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए दमन चक्र का सहारा लिया। आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया, गोलियां बरसाई, गांव जला दिए गए और इस वजह से हजारों लोग मारे गए।

इन सभी कारणों की वजह से भारत छोड़ो आंदोलन असफल रहा।

भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व और योगदान

भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजों को भारत से भगाने के उद्देश्य में असफल रहा। हालांकि फिर भी इस आंदोलन का भारत की स्वतंत्रता में अपना एक महत्व और योगदान रहा है। इस आंदोलन का महत्व निम्न प्रकार है:

राष्ट्रवाद का उदय: भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय जनता में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया। देश में एकता और भाईचारे की भावना पैदा हुई। अब भारतीय जनता को विश्वास हो गया था कि उनकी स्वतंत्रता अब ज्यादा दूर नहीं है।

भविष्य के नेताओं का उदय: राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को अंजाम दिया जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे।

महिलाओं की भागीदारी: आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी आदि महिला नेताओं ने इस आंदोलन में अपना विशेष योगदान दिया।

स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि: यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेज़ों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी।

परंतु इस आंदोलन और द्वितीय विश्व युद्ध के बोझ के कारण ब्रिटिश प्रशासन को यह अहसास हो गया कि भारत को लंबे समय तक नियंत्रित करना संभव नहीं था।

1943 में लार्ड वेवेल भारत के वाइसराय बने। उन्होंने इस गतिरोध को दूर करने के मकसद से 1945 में ‘वेवेल योजना‘ सामने रखी और इस पर वार्ता के लिए कांग्रेस के सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:

साइमन कमीशनक्रिप्स मिशन
अगस्त प्रस्ताववेवेल योजना
नेहरू रिपोर्टसविनय अवज्ञा आंदोलन

संदर्भ: Drishti IAS

FAQs

Q भारत छोड़ो आंदोलन किसने शुरू किया था?

A भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में शुरू किया।

Q भारत छोड़ो आंदोलन कब शुरू हुआ?

A 8 अगस्त 1942

Q भारत छोड़ो आंदोलन के अन्य नाम?

A अगस्त क्रांति और अगस्त आंदोलन

Q भारत छोड़ो का नारा किसने दिया था?

A युसूफ मेहर अली

Q भारत छोड़ो आंदोलन भाग लेने वाली महिला नेताओं के नाम?

A उषा मेहता, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी।

Q भारत छोड़ो आंदोलन कब समाप्त हुआ?

A मई 1944

Q करो या मरो (Do or Die) का नारा किसने दिया?

A महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो भाषण के दौरान।

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