जानिए सविनय अवज्ञा आंदोलन कब हुआ | Civil Disobedience Movement

अप्रैल,1930 में महात्मा गांधी द्वारा दांडी में नमक कानून तोड़े जाने के साथ ही पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया। उस समय नमक पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार था और नमक बनाना गैर कानूनी था।

इस लेख हम भारत के एक बहुत ही महत्वपूर्ण जन आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन का अध्ययन करेंगे। और सविनय अवज्ञा आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू जैसे सविनय अवज्ञा आंदोलन कब हुआ, इस आंदोलन का क्या उद्देश्य था, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभाव आदि का विस्तार से अध्ययन करेंगे और इन्हे समझने का प्रयास करेंगे।

सविनय अवज्ञा आंदोलन क्या है?

सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) से तात्पर्य है कि देश के किसी भी नागरिक द्वारा उस देश की सरकार के किसी कानून या अध्यादेश को स्वीकृत नहीं करना और अहिंसात्मक रूप से उसका निरंतर विरोध करना।

किसी भी अवज्ञा आंदोलन को सविनय अवज्ञा आंदोलन तब तक कहा जा सकता है जब तक कि वह अहिंसात्मक (Non Violent) है। सविनय अवज्ञा आंदोलन में अहिंसा पर विशेष रूप से जोर दिया गया है।

इसी प्रकार महात्मा गांधी ने भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement in hindi) शुरू करने का फैसला लिया और उन्होंने एक ऐसे कानून को अपना लक्ष्य चुना जिससे सभी जनसाधारण प्रभावित हो। फिर चाहे वह गरीबों हो या अमीर।

सन् 1882 में ब्रिटिश सरकार ने नमक कानून (Salt Law) बनाया और नमक को अपने एकाधिकार में ले लिया। इस कानून के तहत नमक बनाने पर 6 महीने की जेल, संपत्ति जब्त और भारी जुर्माना लगाया जाता था।

गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए नमक के मुद्दे को चुना। क्योंकि नमक सभी जन साधारण के द्वारा दैनिक उपयोग में काम में लिया जाता है। इस वजह से सविनय अवज्ञा आंदोलन को नमक सत्याग्रह भी कहा जाता है।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत

दिसंबर 1929 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भारत को पूर्ण स्वराज्य के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु कांग्रेस कार्यसमिति को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की स्वीकृति दे दी गई।

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गांधी जी एक ऐसे कानून को तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ करना चाहते थे, जो भारत के गरीब और असहाय व्यक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा हो। उस समय भारतीयों में नमक कर की वजह से ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश व्याप्त था। इसलिए गांधी जी ने नमक कर के विरुद्ध आंदोलन करने का निश्चय किया।

2 मार्च 1930 को गांधी जी ने भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में गांधीजी ने अपनी 11 मांगे रखी। और इसके साथ ही कहा गया कि यदि ब्रिटिश सरकार इन मांगों को पूरा नहीं करती है, तो वह 12 मार्च 1930 को नमक कानून का उल्लंघन करेंगे।

ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी की मांगों को कोई महत्व नहीं दिया और उन्हें अस्वीकार कर दिया। गांधीजी ने अपनी मांगों की पूर्ति न किए जाने पर, योजनानुसार 12 मार्च 1930 को नमक कानून तोड़ने के लिए साबरमती आश्रम से अपने चुने हुए 78 साथियों के साथ दांडी मार्च यात्रा शुरू की।

दांडी पहुंचने तक हजारों लोग गांधी जी की दांडी मार्च यात्रा से जुड़ गए। दांडी मार्च यात्रा के दौरान गांधीजी और अन्य सभी आंदोलनकारियों ने सफेद खादी के कपड़े पहने थे, इसलिए दांडी मार्च यात्रा (नमक सत्याग्रह) को White Flowing River भी कहा जाता है।

सविनय अवज्ञा आंदोलन कब हुआ?

24 दिन की पदयात्रा के बाद 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी साबरमती आश्रम से 200 मील दूर दांडी पहुंचे। गांधी जी ने समुद्र के जल का वाष्पीकरण कर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा। इस प्रकार 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी के नेतृत्व में पूरे देशभर में सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement) प्रारंभ हो गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होते ही पूरे देश भर में नमक बनाने की घटनाएं सामने आने लगी। इसके बाद गांधी जी ने धरसना, गुजरात स्थित ब्रिटिश सरकार के नमक कारखाने पर धरना देने का निश्चय किया। हालांकि गांधीजी को वहां पर पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया।

गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद सरोजिनी नायडू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और धरसना स्थित नमक कारखाने पर पहुंचे। वहां पर लोगों ने अहिंसात्मक रूप से विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए उन पर हिंसात्मक रूप से लाठी चार्ज किया।

गांधी जी की तरह ही तमिलनाडु के सी. राजगोपालाचारी ने तिरुचिरापल्ली से वेदारण्यम तक पदयात्रा की और नमक बनाकर नमक कानून की अवज्ञा की।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण

साइमन कमीशन के प्रति आक्रोश: सन 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन का गठन किया गया और इस कमीशन में किसी भी भारतीय को सम्मिलित नहीं किया गया। इस वजह से भारतीय जनता में ब्रिटिश सरकार के प्रति काफी आक्रोश बढ़ गया था।

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नेहरू रिपोर्ट को ब्रिटिश सरकार द्वारा अस्वीकृत करना: साइमन कमीशन की चुनौती को स्वीकार करके भारतीय राजनेताओं ने कड़ी मेहनत से नेहरू रिपोर्ट का निर्माण किया। परंतु ब्रिटिश सरकार फिर भी अपनी पराजय को मानने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए उन्होंने नेहरू प्रतिवेदन को अस्वीकार कर दिया।

नेहरू रिपोर्ट के साथ ही कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को 1 साल का अल्टीमेटम दिया था जो कि अब पूरा हो गया था। इस वजह से कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निश्चय किया।

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दयनीय आर्थिक दशा: उस समय देश की आर्थिक दशा काफी दयनीय थी। वैश्विक आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। दैनिक उपयोग में काम में ली जाने वाली वस्तुओं की कीमतें बहुत अधिक बढ़ गई थी। और ऊपर से नमक के ऊपर लगभग 60% कर लगा दिया गया था।

मजदूरों की शोचनीय स्थिति: कल कारखानों में मजदूर हड़तालें सामान्य बातें हो गई थी। मेरठ षड्यंत्र केस में गिरफ्तार 36 मजदूर नेताओं को लंबी कैद की सजा सुनाई गई। इस घटना ने मजदूरों में सनसनी फैला दी। इन समस्त कारणों से मजदूर वर्ग में चेतना जागृत हुई और वे संगठित होने लगे।

गांधीजी के 11 मांगों को अस्वीकार करना: गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने से पहले भारत के तत्कालीन वायसराय को एक पत्र लिखा था। इस पत्र के अंदर महात्मा गांधी ने अपनी 11 मांगे रखी और इसके साथ ही ब्रिटिश शासन के दुष्प्रभाव के बारे में भी बताया।

इसके साथ ही महात्मा गांधी ने कहा कि अगर ब्रिटिश सरकार उनकी इन 11 मांगों को पूरा नहीं करती है, तो वह सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू करेंगे। हालांकि फिर भी ब्रिटिश सरकार द्वारा इन मांगों को अस्वीकृत कर दिया गया।

उपरोक्त सभी कारणों से विवश होकर महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया।

गांधीजी की 11 सूत्री मांगे

  1. शराब पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए।
  2. विनिमय दर को कम किया जाए।
  3. भूमि कर को आधा किया जाए और उसे विधानमंडल के क्षेत्राधिकार में रखा जाए।
  4. नमक कर को समाप्त कर दिया जाए।
  5. सेना खर्च में कम से कम 50% की कमी की जाए।
  6. उच्च अधिकारियों के वेतन में 5% की कमी की जाए।
  7. विदेशी वस्तुओं के आयात पर कर लगाया जाए।
  8. तटीय व्यापार संरक्षण कानून पारित किया जाए।
  9. सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ दिया जाए तथा निर्वासित भारतीयों को देश में वापस आने दिया जाए।
  10. गुप्तचर पुलिस को हटा दिया जाए।
  11. अंग्रेजों की तरह ही भारतीयों को भी हथियार रखने के लिए अनुमति दी जाए।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम

सविनय अवज्ञा आंदोलन से ब्रिटिश सरकार की कार्यप्रणाली अत्यधिक प्रभावित हुई और उनकी नीतियों का खंडन हुआ। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के क्रूर दमन चक्र से विश्व भर में ब्रिटेन की कड़ी निंदा की गई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय जनता के समक्ष ब्रिटिश सरकार से संघर्ष करने के नए मार्ग प्रशस्त किए।

इस आंदोलन से देश के हर तबके के लोगों में राष्ट्रवाद भाईचारे और एकता की भावनाओं का विकास हुआ। इस आंदोलन में महिलाओं, किसानों, मजदूरों आदि ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण भारतीय नागरिकों ने अहिंसा के मार्ग को धारण किया। इस आंदोलन से गांधी जी को भारतीयों को एकीकृत करने में मदद मिली।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के चरण

सविनय अवज्ञा आंदोलन के विकास को 4 चरणों में बांटा जा सकता है। यो चरण निम्न प्रकार है:

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम चरण:

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ दांडी मार्च यात्रा (नमक सत्याग्रह) से हुआ। 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर गांधी जी ने नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा। इसके साथ ही सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे देश में फैल गया।

इस आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने शराब पर प्रतिबंध लगाने पर विशेष जोर दिया। इसके साथ ही विदेशी कपड़ों और वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार करने का आग्रह किया और स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर जोर दिया।

आंदोलन के दौरान गांधीजी ने भारतीय नेताओं और जनता से अनुरोध किया कि वह किसी भी सरकारी दरबारों, उत्सवों आदि में शामिल न हो। विधानसभाओं, सरकारी न्यायालय, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया जाए।

भारतीयों से अनुरोध किया कि वह अपने पदों और उपाधियों को त्याग दें और ब्रिटिश शासन के अधीन जिस भी विभाग में वह काम कर रहे हैं उसे छोड़ दें।

इसके पश्चात गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू और अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आंदोलनकारियों और सार्वजनिक सभाओं पर लाठीचार्ज किया गया और आंदोलन को क्रूरता पूर्वक दबाने का प्रयत्न किया गया।

इस दौरान लंदन में गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया गया। कांग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार किया। कांग्रेस की अनुपस्थिति में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कोई निर्णय निकला और यह सम्मेलन असफल रहा।

उस समय कांग्रेस को भारतीय जनता का समर्थन प्राप्त था और भारत में कोई भी राजनीति के संवैधानिक सुधार करने से पहले ब्रिटिश सरकार को कांग्रेस से सहमति प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक हो गया था।

इस वजह से द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से पूर्व सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांधीजी को मनाया गया। इस दौरान गांधी इरविन समझौता हुआ और इस समझौते के बाद गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गए।

सितंबर से दिसंबर 1931 तक द्वितीय गोलमेज सम्मेलन हुआ और इसमें कांग्रेस की तरफ से महात्मा गांधी शामिल हुए। लेकिन इस सम्मेलन में भी कोई निर्णय नहीं निकल सका और यह सम्मेलन भी असफल रहा।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का द्वितीय चरण :

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के पश्चात कांग्रेस कार्यसमिति ने 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुनः प्रारंभ कर दिया। और गांधीजी के भारत लौटने पर उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया और आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त कर ली गई। इसके साथ ही समाचार पत्रों और प्रेस पर कड़े नियंत्रण लगा दिया गए।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का तृतीय चरण:

जुलाई, 1933 में कांग्रेस कार्यसमिति ने सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन बंद कर उसकी जगह व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का फैसला लिया।

गांधी जी ने जेल में 21 दिन का उपवास शुरू कर दिया। इस वजह से उनकी हालत काफी बिगड़ गई। गांधीजी की बिगड़ती हालत को देखकर 23 अगस्त 1933 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति:

मार्च 1934 में सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त कर दिया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का उद्देश्य

सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नमक कर एवं उपनिवेश शासन का विरोध करना था। सविनय अवज्ञा आंदोलन को दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह, नमक मार्च, white flowing river के नाम से भी जाना जाता है।

लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने अपना लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य निर्धारित किया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन ने पूर्ण स्वराज्य लक्ष्य की नींव के रूप में काम किया।

इसके साथ ही इस आंदोलन के अन्य उद्देश्य शराब पर प्रतिबंध लगाना, भूमि कर को कम करना, सैन्य खर्चे को कम करना, विनिमय दर को कम करना, विदेशी वस्तुओं और कपड़ों का बहिष्कार करना, स्वदेशी उत्पाद अपनाना आदि थे।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव अथवा महत्व

इस आंदोलन से सभी देशवासियों में एकता और राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई। लोग स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आतुर हो गए और देश में भावात्मक एकता का वातावरण स्थापित हुआ।

इस आंदोलन से भारतीय जनता में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और भारतीयों को विश्वास हो गया था कि वह अपनी स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकते हैं।

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी पक्षों पर अनुकूल प्रभाव डाला। स्वदेशी का प्रचार होने से देश में आत्मनिर्भरता के कार्यक्रम को बल मिला। इसके साथ ही देश के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त हुआ।

विदेशों में भारत की जनता के प्रति नैतिक सहानुभूति का भाव जागृत हुआ। ब्रिटेन के उदारवादी दल सरकार पर यह जोर देने लगे कि वह भारत की समस्याओं पर ध्यान दें और उसे जितना जल्दी संभव हो सके उतनी जल्दी स्वतंत्रता प्रदान करें।

इस आंदोलन में भारतीयों में अहिंसा की शक्ति पर विश्वास पैदा कर दिया। और इस आंदोलन में स्त्रियों ने अपनी शक्ति, त्याग और बलिदान का परिचय दिया जो आगे चलकर महत्वपूर्ण साबित हुआ।

संदर्भ: Studyfry

सविनय अवज्ञा आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:

Gk hindi quizभारत छोड़ो आंदोलन
साइमन कमीशननेहरू रिपोर्ट
Daily Current affairs लाहौर अधिवेशन

निष्कर्ष

सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में अत्यंत क्रांतिकारी घटना थी जिसने देश में उत्साह और गौरवपूर्ण राष्ट्रीयता का संचार कर दिया।

इस लेख के माध्यम से हमने जाना है कि किस प्रकार महात्मा गांधी के नेतृत्व में दांडी मार्च यात्रा शुरू की गई और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हुआ।

उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा और आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल गए होंगे।

FAQS

Q सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू हुआ?

A 6 अप्रैल 1930

Q दांडी मार्च में कितने लोगों ने भाग लिया?

A गांधी जी एवं 78 अन्य सदस्य

Q सविनय अवज्ञा आंदोलन के अन्य नाम?

A दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह, नमक मार्च, white flowing river.

Q सविनय अवज्ञा आंदोलन किसके नेतृत्व में हुआ?

A मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी)

Q सविनय अवज्ञा आंदोलन कब समाप्त हुआ?

A मार्च, 1934

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