31 दिसंबर 1929, को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने “लाहौर अधिवेशन” आयोजित किया। इस ऐतिहासिक अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज‘ (Purna Swaraj) को कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य घोषित किया।
इस लेख में हम कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 (Lahore Session) के बारे में जानेंगे। लाहौर अधिवेशन क्या है, लाहौर अधिवेशन कब और क्यों हुआ, इसकी अध्यक्षता किसने की, लाहौर अधिवेशन की क्या-क्या मुख्य बातें और मांगी थी, आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
पृष्ठभूमि
भारत सरकार अधिनियम 1919 में एक प्रावधान रखा गया। इस प्रावधान के अनुसार प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल में एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो सरकार के कार्यों की जांच और संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करेगा।
परंतु ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1927 में ही साइमन कमीशन का गठन कर दिया। भारत के तत्कालीन राज्य सचिव लॉर्ड बिरकेनहेड ने भारतीयों को इस कार्य के लिए अयोग्य समझा और इस आयोग में एक भी भारतीय को शामिल नहीं किया।
इस कमीशन का भारतीयों द्वारा पुरजोर विरोध किया गया। लॉर्ड बिरकेनहेड ने इस विरोध को दबाने के लिए भारतीय राजनेताओं को भारत के संविधान के निर्माण लिए एक ऐसा मसौदा तैयार करने की चुनौती दी जो हर एक वर्ग, समुदाय और राजनीतिक दल द्वारा स्वीकृत किया जाए।
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ब्रिटिश सरकार की इस चुनौती के प्रत्युत्तर में भारतीय राजनेताओं द्वारा नेहरू रिपोर्ट तैयार की गयी। इस रिपोर्ट को 1928 में ब्रिटिश सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
नेहरू रिपोर्ट में भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देने के साथ-साथ और मांगे भी की गई थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को इन मांगों को पूरा करने के लिए 1 वर्ष की अवधि (31 दिसंबर 1929 तक) की चेतावनी (Ultimatum) दी थी।
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हालांकि ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को कोई अधिक महत्व नहीं दिया। 1929 की शुरुआत से ही गांधीजी भारतीय जनता को एकजुट करने में जुट गए। इसके लिए गांधी जी ने देश के विभिन्न भागों में सभाएं आयोजित की। और देश के युवाओं को राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
गांधीजी ने विदेशी कपड़ों और अन्य उत्पादों के बहिष्कार पर जोर दिया और स्वदेशी उत्पादों को अपनाने का आग्रह किया। मार्च 1929 में गांधीजी को कलकत्ता में गिरफ्तार कर लिया गया। गांधीजी की गिरफ्तारी के साथ ही भारतीय जनता में अंग्रेजो के खिलाफ आक्रोश और अधिक बढ़ गया।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका। ऐसे ही वर्ष 1929 की अन्य घटनाओं से भारतीय जनता में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश बढ़ गया।
लॉर्ड इरविन ने 31 अक्टूबर 1929 को एक अस्पष्ट घोषणा की। इस घोषणा को दीपावली घोषणा या इरविन घोषणा के नाम से भी जाना जाता है। इस घोषणा में लॉर्ड इरविन ने कहा कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत को डोमिनियन स्टेटस प्रदान करना है। हालांकि इसमें किसी समय का जिक्र नहीं किया गया था।
2 नवंबर 1929 को दिल्ली में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें देश के सभी प्रमुख नेता शामिल हुए। इस सम्मेलन में एक घोषणापत्र जारी किया गया, जिसे दिल्ली घोषणापत्र भी कहा जाता है।
इस घोषणापत्र में ब्रिटिश सरकार के समक्ष कुछ मांगे रखी गई, हालांकि लॉर्ड इरविन ने इन मांगों को खारिज कर दिया।
लाहौर अधिवेशन 1929 (पूर्ण स्वराज्य)
19 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी और लोगों ने ब्रिटिश सरकार से पूरी तरह से स्वतंत्र होकर अपना राज्य बनाने के लिए संघर्ष करने की प्रतिज्ञा की थी।
31 दिसंबर 1929 को कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन पंजाब प्रांत की तत्कालीन राजधानी लाहौर में आयोजित किया गया। यह कांग्रेस का 45 वां अधिवेशन था हालांकि कई जगह पर इसे 44 वां अधिवेशन भी बताया जाता हैं।
लाहौर अधिवेशन का अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया। हालांकि पहले इस अधिवेशन का अध्यक्ष गांधीजी को चुना गया था, लेकिन गांधीजी के कहने पर ही पंडित जवाहरलाल नेहरू को इसका अध्यक्ष बनाया गया।
नेहरू रिपोर्ट के लिए कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को 31 दिसंबर 1929 (1 वर्ष) तक का समय दिया था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को कोई महत्व नहीं दिया।
फलस्वरूप जवाहर लाल नेहरु ने 31 दिसम्बर 1929 की मध्यरात्रि को इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ रावी नदी के तट पर तिरंगे झण्डे को फहराया। इस तिरंगे झंडे में ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफ़ेद, नीचे हरा रंग और बीच में चरखे का प्रतीक चिह्न था।
इस अधिवेशन में सर्वसम्मति द्वारा कुछ महत्वपूर्ण बातें कही गई जो निम्न प्रकार है:
लाहौर अधिवेशन की मांगे या मुख्य बातें
- गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार करने का फैसला लिया गया।
- नेहरू समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को निरस्त घोषित कर दिया गया।
- पूर्ण स्वराज्य को कांग्रेस ने अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया। डोमिनियन स्टेटस की मांग को पूर्णता खारिज कर दिया गया।
- लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस कार्यसमिति को सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) शुरू करने की अनुमति दे दी गई। कांग्रेस की कार्यसमिति ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का जिम्मा गांधी जी को सौंप दिया।
- सभी कांग्रेस सदस्यों को भविष्य में प्रशासन के चुनावों में भाग न लेने तथा मौजूदा सदस्यों को अपने पदों से त्यागपत्र देने का आदेश दिया गया।
- 26 जनवरी 1930 का दिन पूरे राष्ट्र में प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
26 जनवरी 1930 को पूरे राष्ट्र में जगह-जगह सभाएं आयोजित की गई। शहरों गांवों और कस्बों में स्थानीय भाषा में स्वतंत्रता की शपथ को पढ़ा गया और तिरंगा झंडा फहराया गया।
इसी प्रकार प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के पश्चात स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाने लगा। 26 जनवरी के महत्व को बरकरार रखने के लिए 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया और इसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
इसके पश्चात 31 जनवरी 1930 को गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपनी 11 मांगे रखी। अपनी इन मांगों में गांधी जी ने किसान वर्ग, उद्यमी वर्ग और आम जनता के लिए कुछ ना कुछ बात कही थी। जब इन मांगों पर ब्रिटिश सरकार ने कोई प्रतिक्रिया की तो महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया।
लाहौर अधिवेशन से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक्स:
सविनय अवज्ञा आंदोलन | भारत सरकार अधिनियम 1919 |
नेहरू रिपोर्ट 1928 | साइमन कमीशन |
भारत सरकार अधिनियम 1935 | असहयोग आंदोलन |
आपने क्या सीखा?
हमने इस लेख में कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन के बारे में जाना। इस अधिवेशन में राष्ट्रीय आंदोलनों का लक्ष्य डोमिनियन स्टेटस के बजाय पूर्ण स्वराज निर्धारित किया गया। 26 जनवरी 1930 को प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।
उम्मीद है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा और आपको कांग्रेस लाहौर अधिवेशन 1929 से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे। यदि आपको अभी भी कोई डाउट है तो आप अपनी समस्या या सुझाव कमेंट बॉक्स के जरिए बता सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. कांग्रेस लाहौर अधिवेशन 1929 के अध्यक्ष कौन थे?
A. पंडित जवाहरलाल नेहरू
Q. पूर्ण स्वराज की मांग कब की गई?
A. 1929 लाहौर अधिवेशन में
Q. कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन कब हुआ?
A. 31 दिसंबर 1929
Q. सर्वप्रथम पूर्ण स्वतंत्रता की मांग किसने की?
A. 1921, मौलाना हसरत मोहानी।
Q. प्रथम स्वतंत्रता दिवस कब मनाया गया?
A. 26 जनवरी 1930